हास्य अभिनेत्री उमादेवी जो आगे चलकर टुनटुन के नाम से मशहूर हुई, दरअसल एक अभिनेत्री नहीं बल्कि गायिका थी.. जिन्होंने अफ़साना लिख रही हूं जैसे मशहूर गाने गाये थे. लेकिन उनका गायन करियर ज्यादा नहीं चला तो उन्हें रोजी-रोटी कमाने के लिए एक्टिंग के मैदान में उतरना पड़ा… टुनटुन एक ऐसी हास्य कलाकार थीं, जिनके लिए ख़ासतौर पर रोल लिखे जाते थे. उन्होंने अपने ज़माने के सभी बड़े स्टार्स के साथ काम किया था. साथ ही उन्होंने बॉलीवुड की पहली फ़ीमेल कॉमेडियन का तमगा भी हासिल किया था.
उमादेवी खत्री, का जन्म उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण पंजाबी परिवार में हुआ था. बचपन में ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी और इन्हें इनके चाचा ने पाला था. 13 वर्ष की आयु में ये घर से भागकर मुंबई आ गयी थीं और यह मुंबई में सीधे संगीत निर्देशक नौशाद अली के पास गयी. इन्होंने नौशाद अली को बताया कि वो गा सकती हैं और अगर उन्होंने उन्हें काम नहीं दिया तो वो समुंदर में डूबकर जान दे देंगी. नौशाद ने इन्हें सुना और उसी समय इन्हें काम दे दिया. बॉलीवुड में लता मंगेशकर की एंट्री हो गई और टुनटुन को गाने के ऑफ़र मिलने कम हो गए. यहां फिर से नौशाद ने उनके करियर को सहारा दिया और टुनटुन को एक्टिंग करने की सलाह दी. टुनटुन राज़ी हुई मगर एक शर्त पर, वो ये कि टुनटुन डेब्यू करेंगी तो दिलीप कुमार की फ़िल्म से. इस शर्त को सुनकर नौशाद हंस दिए. फिर उनके कहने पर दिलीप साहब की फ़िल्म ‘बाबुल’ में उन्हें एक कॉमिक रोल करने का मौका मिला. इस तरह टुनटुन की मुराद पूरी हो गई.
इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक बार दिलीप साहब उनसे टकराकर उन्हीं के ऊपर गिर गए और उनके मुंह से निकला, ‘टुनटुन’… तभी से ही उमादेवी का नाम टुनटुन हो गया. फिर टुनटुन ने कई फ़िल्मों में अपनी कमाल की कॉमेडी से लोगों को हंसाया और गुदगुदाया. 60-70 के दशक में कॉमेडी का दूसरा नाम बन गई थीं टुनटुन और हर फ़िल्म में उनके लिए एक रोल ज़रूर रखा जाने लगा.
अपने फिल्मी करियर के दौरान टुनटुन ने लगभग 198 फिल्मों और उस समय के लगभग सभी प्रमुख हास्य अभिनेताओं जैसे कि भगवान दादा, आग़ा, सुंदर, मुकरी, धूमल और जॉनी वॉकर के साथ काम किया. इनकी आखरी फिल्म साल 1990 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म ‘कसम धंधे की’ थी. 23 नवंबर, 2003 को टुनटुन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. मगर आज भी वो हर सिने प्रेमी के दिल में ज़िंदा हैं.