गुरुदत्त और देवानंद | दोनों ही अपने-अपने फन में उस्ताद. एक हिंदी सिनेमा का महान निर्देशक तो दूसरा हिंदी सिनेमा का सदाबहार अभिनेता. दोनों का निजी व्यक्तित्व एक-दूसरे से बिलकुल अलग. पुणे स्थित प्रभात फिल्म कंपनी में मिले तो दोस्ती हो गई. इनके मिलने का संयोग भी बड़ा अजीब रहा. देवानंद अपनी पहली फिल्म ‘हम एक हैं’ में काम कर रहे थे, जिसकी शूटिंग प्रभात में होती थी. गुरुदत्त इस फिल्म के निर्देशक प्यारेलाल संतोषी के सहायक तो थे ही साथ ही फिल्म कंपनी में बतौर डांस डायरेक्टर उनकी नियुक्ति की गई थी. कंपनी का धोबी (जो सभी के कपड़े धोया करता था) ने एक दिन देवानंद की शर्ट गलती से गुरुदत्त के पास पहुंचा दी और जल्दबाजी में वे वही शर्ट पहनकर शूटिंग पर चले गए. इधर अपनी मनपसंद शर्ट ना पाकर देवानंद परेशान होते रहे. बाद में उन्हें किसी ने बताया कि उनकी शर्ट तो फिल्म के डांस डायरेक्टर ने पहन रखी है. देवानंद दनदनाते हुए सेट पर जा पहुंचे और गुरुदत्त पर बरस पड़े. गुरुदत्त मुस्कुराते हुए देवानंद की बौखलाहट देखते रहे. जब देव साहब का गुस्सा ठंड हुआ तो गुरुदत्त ने उनसे क्षमा मांगते हुए कहा कि धोबी की गलती से ऐसा हो गया, वे अच्छी तरह से उनकी शर्ट धुलवाकर उन्हें वापस कर देंगे.. देवानंद को गुरुदत्त के इस व्यवहार ने काफी प्रभावित किया और उन्हेंने शर्मिंदा होते हुए गुरुदत्त से अपने व्यव्हार के लिए माफ़ी मांग ली. यहीं से दोनों के बीच दोस्ती की शुरुआत हुई.
दोनों इंडस्ट्री में स्ट्रगल कर रहे थे. दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे से वादा किया कि जिंदगी की दौड़ में जो आगे निकलेगा वो दूसरे को भी सहारा देगा. पहला वादा देवानंद ने निभाया.. जब उनके प्रोड्क्शन नवकेतन के बैनर तले फिल्म ‘बाजी’ की शुरुआत हुई तो बड़े भाई चेतन आनंद की मर्जी के खिलाफ देव साहब ने इस फिल्म के निर्देशन का जिम्मा गुरुदत्त को सौंप दिया. देव-गीताबाली स्टारर इस फिल्म की सफलता ने देवसाहब के लडखडाते करियर को स्थिरता प्रदान की.
दोस्तों की इस युगल जोड़ी ने आगामी फिल्म ‘जाल’ में भी सफलता का परचम लहराया, लेकिन इसी फिल्म ने दोनों की दोस्ती के बीच विवाद का बीज भी बो दिया. गुरुदत्त अपने कामों में कभी किसी का हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करते थे, जबकि सफलता का स्वाद चखते ही देवानंद को दूसरों के कामों में टांग अडाने की आदत पड़ गई. जाहिर है मतभेद तो होना ही था. लेकिन गुरुदत्त काफी गंभीर किस्म के इंसान थे. एक तरफ दोस्ती का लिहाज तो दूसरी तरफ अहसानों का बोझ और इस बोझ तले दबे गुरुदत्त जानते थे इस तरह निबाह करना काफी कठिन है. इसीलिए उन्होंने ऐसा रास्ता निकाला कि वे देवानंद से किया गया वादा भी निभा सकें और उनकी दोस्ती पर भी आंच ना आए.
गुरुदत्त ने जब अपने बैनर तले फिल्म ‘सीआईडी’ के निर्माण की घोषणा की तो वादे के मुताबिक देवानंद को ही इस फिल्म का हीरो बनाया मगर निर्देशन का जिम्मा उन्होंने अपने सहायक राज खोसला को सौंप दिया. फिल्म तो जबरदस्त हिट रही लेकिन दोस्तों के बीच गांठ पड़ गई. दोनों के रास्ते अलग हो गए और इसके बाद फिर कभी ना गुरुदत्त की फिल्म में देवानंद नजर आये और ना कभी नवकेतन की फिल्म में गुरुदत्त. हालांकि जिंदगीभर दोनों एक-दूसरे की दोस्ती का दम जरुर भरते रहें.