शत्रुघ्न सिन्हा इसे अपनी शोहरत कहें या रुसवाई कि पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का डिप्लोमा लेने के बाद मुंबई का रुख करने से पहले ही अपनी बददिमागी के लिए बॉलीवुड में मशहूर हो गए। इंस्टीट्यूट के साथियों के बीच उनकी छवि दबंग ,मुंहफट और बड़ी-बड़ी बातें करने वाले शख्स की थी। सिन्हा की इस छवि के कारण उन्हें कोई भी काम देने को तैयार नहीं हो रहा था लेकिन मोहन सहगल ने उन्हें 1969 में बनी अपनी फिल्म “साजन ” में ब्रेक देने का रिस्क उठाया। पहली ही फिल्म में शॉर्टगन,आशा पारेख के साथ ऐसे विवाद में फंस गए कि फिल्म का बड़ा गर्क होते-होते बचा। आशा पारेख ने उनपर अभद्रता का आरोप लगाकर उनकी छवि को और पुख्ता कर दिया। ऐसे समय में संजीव कुमार उनके बचाव में आगे आये और उन्हें इस मुसीबत से निकाला । संजीव कुमार ने ही शत्रु जी का परिचय मुमताज से करवाया। शत्रु जी के सख्त चेहरे के पीछे मुमताज ने एक मोम सा दिल पाया और यहीं से दोनों के बीच दोस्ती की शुरुआत हुई। इस दोस्ती की वजह से शत्रु जी को टी एल वी प्रसाद की फिल्म “खिलौना ” मिली जो उनके करियर के लिए एक बड़ी फिल्म साबित हुई।