ऐसे बने स्टार सीरिज में हम आपको बॉलीवुड सितारों के संघर्ष से रु-ब-रु करवाते हैं .इस कड़ी में हम आज बात करेंगे अभिनेता विनोद खन्ना की .
विनोद खन्ना की फैमिली बैकग्राउंड ऐसी थी जहाँ सिनेमा को अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता था .परिवार में फिल्म देखने की सख्त मनाही थी .ऐसे में भला विनोद खन्ना फिल्मों में आने की सोचते भी कैसे ? लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने फिल्म मुगले-आजम देखी और यहीं से उनके अंदर अभिनेता बनने की इच्छा जगी। पिता उन्हें पढ़ा-लिखा कर एक कामयाब बिजनेसमैन बनाना चाहते थे जबकि विनोद खन्ना को बिजनेस में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। इसी दौरान एक पार्टी में उनकी मुलाक़ात अभिनेता सुनील दत्त से हुई जो उन दिनों ‘मन का मीत’ बनाने की तैयारी कर रहे थे.उन्होंने विनोद खन्ना को इस फिल्म में अपने भाई का रोल ऑफर किया और उन्होंने हामी भी भर दी।
विनोद के पिता के सी खन्ना को जैसे ही ये बात पता चली वो काफी नाराज हो गए और उन्होंने विनोद के सर पर बन्दूक तान दी। आखिरकार मां के बीचबचाव के बाद के सी खन्ना ने इस शर्त पर उन्हें एक्टिंग करने की इजाजत दी कि अगर दो साल में उन्होंने बॉलीवुड में अपनी जगह नहीं बनाई तो उन्हें फैमिली बिजनेस संभालना पडेगा ,विनोद खन्ना ने पिता की ये शर्त मान ली और इस तरह बॉलीवुड में उनकी शुरुआत हुई।
सुनील दत्त की फिल्म ‘मन का मीत’ में विनोद खन्ना ने दत्त साहब के छोटे भाई का रोल निभाया जो निगेटिव् किरदार था। इसके बावजूद उन्हें लोगों ने काफी पसंद किया। इस फिल्म के बाद विनोद खन्ना के पास फिल्मों की झड़ी लग गयी .फिल्म मेरा गाँव मेरा देश की सफलता ने उन्हें बतौर खलनायक इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया .लेकिन बेटे को परदे पर हीरो से पिटते देख उनकी मां को काफी बुरा लगता था. इसलिए उन्होंने धीरे-धीरे विलेन का ऑफर ठुकराना शुरू कर दिया
काफी इंतज़ार के बाद 1971 में उन्हें फिल्म ‘हम तुम और वो’ में हीरो का रोल ऑफर हुआ और इस तरह वो खलनायक से नायक बन गए। 1973 में आई गुलज़ार की फिल्म मेरे अपने काफी कामयाब रही। इसके बाद आई ‘अचानक’ ने उन्हें बतौर हीरो स्थापित कर दिया।
कुर्बानी ,हेराफेरी,खूनपसीना ,अमर अकबर अन्थोनी,मुकद्दर का सिकंदर जैसी फिल्मों के जरिये विनोद खन्ना का सितारा बुलंदियों पर जा पहुंचा। इस समय विनोद खन्ना अपने करियर के शीर्ष पर थे। इन्हीं दिनों विनोद धार्मिक गुरु ओशो रजनीश के संपर्क में आये जिसने उनकी ज़िंदगी की दिशा ही बदल दी। विनोद खन्ना ने शोहरत और दौलत की इस दुनिया को ठुकरा दिया और ओशो की शरण में चले गए।
विनोद खन्ना का विद्रोही स्वभाव किसी बंदिश में रहने का आदि नहीं था। जल्द ही रजनीश से उनका मोह भांग हो गया और 5 सालों बाद वो अपनी दुनिया में लौट आये। बॉलीवुड ने भी अपने इस स्टार का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया। वापसी के बाद उन्होंने मुकुल आनद की इन्साफ में काम किया। ये फिल्म हिट रही और विनोद खन्ना की गाड़ी एक बार फिर चल पडी। लेकिन सच्चाई यही है कि उन्हें पहले जैसी सफलता नहीं मिल पाई। संन्यास लेने से पहले उन्हें अमिताभ बच्चन का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी माना जाता था लेकिन उनके जाते ही बच्चन साहब का रास्ता साफ़ हो गया। कई लोगों का कहना है कि अगर उन्होंने संन्यास नहीं लिया होता तो आज सुपरस्टार का खिताब उनके पास होता।