बॉलीवुड में ज्यादा महत्त्व किस्मत का है या मेहनत का.. इसे लेकर लोगों की राय अलग-अलग है. कई स्टार ऐसे हैं जो केवल लंबे संघर्ष और कड़ी मेहनत के बूते बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए. किस्मत के भरोसे शोहरत की बुलंदियां चुूमनेवाले सितारों की भी एक लंबी फेहरिस्त है. जैकी श्रॉफ के बॉलीवुड करियर को देखें तो इसमें उनकी किस्मत का हाथ ज्यादा नजर आता है. ये अलग बात है कि किस्मत से मिले इस मौके को उन्होंने आगे चलकर अपनी मेहनत से शिखर पर पहुंचा दिया.
1 फरवरी, 1960 में एक गुजराती परिवार में जन्मे जैकी उर्फ जयकिशन कटुभाई श्रॉफ मुंबई के वालकेश्वर इलाके में तीन बत्ती की एक चॉल में रहा करते थे. फिल्मों में आने से पहले इन्होंने कुछ विज्ञापनों में एक मॉडल के रूप में काम किया था. यहीं से उन्हें फिल्मों में एक्टिंग का शौक लग गया. उनके इस शौक को सबसे पहले देवआनंद साहब की फिल्म स्वामी दादा में एक छोटी सी भूमिका देकर पूरा किया. अपनी पृष्ठभूमि और पहुंच के कारण जैकी इससे ज्यादा सोचने तैयार भी नहीं थे. लेकिन किस्मत ने उनके बारे में पहले से ही सोच रखा था.
‘हीरो’ ने रातोंरात बनाया हीरो
साल 1983 में एक पार्टी में जैकी की मुलाकात शोमैन सुभाष घई से हुई. इस मुलाकात ने जैकी की किस्मत को ही बदलकर रख दिया. इसी साल घई ने उन्हें अपनी फिल्म ‘हीरो’ से बॉलीवुड में लांच कर दिया. कमाल तो तब हुआ जब फिल्म रिलीज होने के बाद सुपरहिट हुई और जैकी रातोंरात हीरो बन गए. फिल्म में जिस हीरो ने जैकी का किरदार निभाया उसे हर कोई जैकी श्रॉफ के नाम से जानता है. हीरो की कामयाबी के साथ ही जैकी स्टार बन चुके थे.
डगमगाने लगी थी नैया
निर्माताओं के बीच जैकी को अपनी फिल्म में लेने की होड़ सी मच गयी और जैकी ने मौके का फायदा उठाते हुए धड़ाधड़ फिल्में साइन करनी शुरू कर दी. हीरा पन्ना, स्वामी दादा, त्रिदेव, सिक्का, दिलजला, दहलीज, अल्लारक्खा, रामलखन, काला बाजार, 100 डेज, सौदागर, आईना, रूप की रानी चोरों का राजा आदि ऐसी ही फिल्में हैं जो उन्होंने इस दौरान की. इनमें से अधिकांश फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई और जैकी की नैया डगमगाने लगी.
‘रामलखन’ ने पार लगाई नैया
इससे पहले की जैकी की फिल्मी पारी का अंत हो जाता उनकी मदद को एक बार फिर उनके गॉडफादर सुभाष घई आगे आये और उन्होंने साल 1889 में उन्हें फिल्म ‘रामलखन’ में साइन किया. ये फिल्म कामयाब रही और जैकी की गाड़ी फिर चल पड़ी. इसके बाद आई राम गोपाल वर्मा की ‘रंगीला’ भी हिट साबित हुई. जैकी की डिमांड फिर आसमान छूने लगी. दुश्मनी, अग्निसाक्षी, बॉर्डर, कभी ना कभी, सिर्फ तुम, लावारिस, कारतूस, खलनायक, मिशन कश्मीर, रिफ्यूजी, भूत अंकल, भागमभाग जैसी फिल्मों से आगे बढ़ता उनका फिल्मी सफर ‘धूम-3’ तक आ पहुंचा है.
चरित्र अभिनेताओं की कतार में शामिल हुए जैकी
अपने 32 साल के करियर में जैकी ने हर तरह के रोल निभाये. हीरो से लेकर विलेन तक हर तरह की भूमिकाओं में उन्होंने अपना हाथ आजमाया. उम्र बढ़ने के साथ ही जैकी ने भी वक्त की नजाकत को समझते हुए चरित्र अभिनेताओं की कतार में शामिल हो गए. जैकी श्रॉफ की सफलता दरअसल ये साबित करती है कि अगर सपनों में सच्चाई हो तो मुश्किल से मुश्किल लक्ष्य को भी हासिल किया जा सकता है.