दंगल और छिछोरे जैसी फिल्म बनाने वाले नीतेश तिवारी एक जहीन किस्म के डायरेक्टर हैं जिसका नज़ारा वो अपनी पिछली फिल्मों में दिखा चुके हैं. लेकिन इस बार यही जहनियत उनपर भारी पड़ गई और फिल्म बनाते-बनाते उन्होंने वर्ल्ड वॉर-2 का इतिहास ही पढ़ा दिया.
ये कहानी है वरुण धवन यानि अजय दीक्षित उर्फ अज्जू भैया की जिन्होंने लखनऊ में अपना भौकाल बना रखा है. ये हैं तो टीचर लेकिन पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. इन्हें अपनी इमेज से बड़ा प्यार है. दूसरी तरफ हैं जाह्नवी कपूर यानि निशा जिन्हें बचपन से दौरे पड़ते हैं और इसी वजह से उनकी जिंदगी में कभी कोई लड़का नहीं आया. वरुण और जाह्नवी की शादी हो जाती है क्योंकि जाह्नवी को वरुण की इमेज अच्छी लगती है और वरुण को लगता है कि जाह्नवी जैसी लड़की से शादी करना उसकी इमेज के लिए और अच्छा होगा. जाह्नवी वरुण को पहले से अपनी बीमारी के बारे में बता चुकी होती है लेकिन सुहागरात को ही उसे फिर से दौरा पड़ता है और पहले ही दिन से इन दोनों में दूरिया आ जाती हैं. फिर अजय को स्कूल से एक महीने के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है क्योंकि उसने एक विधायक के बेटे को थप्पड़ मार दिया. नौकरी जाएगी तो इमेज खराब होगी इसलिए अजय तय करता है कि यूरोप जाएगा और वहां वीडियो बनाकर बच्चों को वर्ल्ड वॉर 2 के बारे में पढ़ाएगा. जाह्नवी भी साथ जाती हैं लेकिन फिर क्या होता है? क्या अजय की नौकरी बचती हैं? इन दोनों का रिश्ता बच पाता है? इसके लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी
फिल्म थोड़ी गंभीर किस्म की थी लेकिन कलाकार हलके किस्म के. वरुण धवन किस एंगल से प्रोफ़ेसर लगते हैं. और जाह्नवी की एक्टिंग देख वैसे ही मिर्गी आने लगती है. दोनों ही पूरी तरह से मिस्कास्टिंग हैं. बवाल एक नए कॉन्सेप्ट के साथ आई थी. डायरेक्टर भी बड़े थे और सितारे भी नामी थे. लेकिन फिल्म के खराब ट्रीटमेंट, कमजोर डायरेक्शन, बिखरी हुई एक्टिंग ने बवाल को मुसीबत बनाकर रख दिया. इस तरह नितेश तिवारी की यह फिल्म हर मोर्चे पर निराश ही करती है